मनीषा जी की दर्दनाक कहानी: 9 दिन बाद हुआ अंतिम संस्कार, न्याय की पुकार तेज़
देश में आए दिन ऐसी घटनाएँ सामने आती हैं जो इंसानियत को झकझोर कर रख देती हैं। हाल ही में मनीषा जी का मामला भी उसी कड़ी का हिस्सा है। तीन-तीन पोस्टमार्टम के बाद पूरे 9 दिन तक उनके शव को इंसाफ़ की उम्मीद में रोका गया। लेकिन जब जनता और परिवार ने सरकार से उम्मीद खो दी, तब जाकर आज गाँव में मनीषा जी के मृत शरीर को अंतिम विदाई दी गई।
यह घटना न केवल एक परिवार का दर्द है, बल्कि पूरे समाज के लिए एक सवाल है कि आखिर कब तक बेटियाँ न्याय के लिए इस तरह तड़पती रहेंगी?
9 दिन तक इंसाफ़ की जंग
मनीषा जी की मौत के बाद परिवार और ग्रामीणों ने लगातार न्याय की माँग की। लेकिन प्रशासन की लापरवाही और धीमी जाँच प्रक्रिया ने उनके दर्द को और गहरा कर दिया।
तीन बार पोस्टमार्टम किया गया।
परिवार और ग्रामीण न्याय की उम्मीद में लगातार प्रदर्शन करते रहे।
लेकिन सरकार की ओर से ठोस कार्रवाई न होने के कारण लोगों का भरोसा टूटने लगा।
जब जनता पूरी तरह निराश हो चुकी थी, तब जाकर मनीषा जी का अंतिम संस्कार किया गया।
गाँव में ग़म का माहौल
जब शव गाँव लाया गया तो चारों ओर सिर्फ़ मातम छा गया।
माता-पिता के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे।
भाई-बहन का दर्द देख पाना किसी के लिए आसान नहीं था।
गाँव के सैकड़ों लोग अंतिम संस्कार में मौजूद रहे और सभी की आँखें नम थीं।
हर किसी के मन में यही सवाल था कि आखिर कब तक बेटियों को न्याय पाने के लिए इतनी लंबी जंग लड़नी पड़ेगी?
समाज के लिए सवाल
यह घटना कई बड़े सवाल छोड़ जाती है:
1. कानून व्यवस्था की कमजोरी – क्यों इंसाफ़ में इतनी देर होती है?
2. सरकार की चुप्पी – जब जनता बार-बार आवाज़ उठा रही थी तो तुरंत कार्रवाई क्यों नहीं हुई?
3. महिलाओं की सुरक्षा – क्या आज भी हमारी बेटियाँ सुरक्षित नहीं हैं?
मनीषा जी की आत्मा को श्रद्धांजलि
गाँव के लोगों ने आँसूओं के बीच उन्हें विदा किया। सबकी यही दुआ थी –
> “भगवान मनीषा जी की आत्मा को शांति दे और दोषियों को कड़ी से कड़ी सज़ा मिले।”
दोषियों को सख़्त सज़ा क्यों ज़रूरी है?
यदि अपराधियों को सख़्त सज़ा नहीं दी गई, तो यह और अपराधियों को बढ़ावा देगा। कानून तभी मज़बूत कहलाएगा जब पीड़ित परिवार को तुरंत न्याय मिलेगा।
सोशल मीडिया पर ग़ुस्सा
मनीषा जी का मामला सोशल मीडिया पर भी छा गया है। लोग लगातार सरकार और प्रशासन से सवाल कर रहे हैं।
ट्विटर, फेसबुक और इंस्टाग्राम पर #JusticeForManisha जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।
हर कोई यही चाहता है कि दोषियों को जल्द से जल्द फाँसी की सज़ा मिले।
जनता की आवाज़
यह घटना हमें याद दिलाती है कि जनता की आवाज़ ही असली ताकत है। जब तक लोग मिलकर अन्याय के ख़िलाफ़ खड़े नहीं होंगे, तब तक बदलाव संभव नहीं है।
निष्कर्ष
मनीषा जी का मामला केवल एक परिवार का दर्द नहीं बल्कि पूरे समाज के लिए चेतावनी है। हमें यह समझना होगा कि अगर आज आवाज़ नहीं उठाई तो कल कोई और मनीषा इसी तरह न्याय के लिए तड़पेगी।
हमें मिलकर सरकार और प्रशासन पर दबाव बनाना होगा ताकि बेटियों को सुरक्षा मिले और दोषियों को कड़ी सज़ा। यही मनीषा जी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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