उत्तर प्रदेश में दहेज के लिए निक्की को ज़िंदा जलाया: समाज कब तक सहेगा ऐसे अत्याचार?
उत्तर प्रदेश से आई एक दर्दनाक घटना ने पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया है। दहेज की बलिवेदी पर फिर एक और बेटी को ज़िंदा जला दिया गया। पीड़िता निक्की को उसके ही पति विपिन ने आग के हवाले कर दिया। पुलिस ने आरोपी को एनकाउंटर में पकड़ लिया और जब उसने हिरासत से भागने की कोशिश की तो उसके पैर में गोली लगी। यह घटना सिर्फ एक महिला पर हुए अत्याचार की नहीं बल्कि पूरे समाज पर एक गहरा सवाल है कि आखिर कब तक हमारी बेटियाँ दहेज की आग में जलती रहेंगी?
दहेज: एक कुप्रथा जिसने समाज को खोखला कर दिया
भारत में दहेज प्रथा कोई नई बात नहीं है। सदियों से यह समाज की जड़ में बैठी हुई है। बेटी के जन्म पर माँ-बाप पर बोझ डालने वाली यह प्रथा आज भी खत्म नहीं हो पाई। कानून बनने के बावजूद आए दिन ऐसी घटनाएँ सामने आती हैं जहाँ बहू से दहेज की मांग की जाती है और जब वह पूरा नहीं कर पाती, तो उसे प्रताड़ित किया जाता है या उसकी हत्या कर दी जाती है।
निक्की के साथ जो हुआ, वह इसी कुप्रथा का ज्वलंत उदाहरण है। शादी को सात जन्मों का बंधन कहा जाता है, लेकिन जब रिश्ता लालच और दहेज की मांग पर खड़ा हो, तो वह रिश्ता कभी भी स्थायी नहीं हो सकता।
पुलिस की कार्यवाही और आरोपी की गिरफ्तारी
इस मामले में पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए आरोपी पति विपिन को पकड़ लिया। रिपोर्ट्स के अनुसार, जब आरोपी हिरासत से भागने की कोशिश कर रहा था तो पुलिस की गोली उसके पैर में लगी। समाज के लिए यह राहत की बात है कि आरोपी गिरफ्त में है, लेकिन सवाल यह है कि क्या इतनी बड़ी सज़ा सिर्फ गिरफ्तारी तक ही सीमित रहनी चाहिए?
ऐसे अपराधों के लिए सख्त और त्वरित न्याय ज़रूरी
हर दिन दहेज के कारण महिलाएँ अपनी जान गंवा रही हैं। आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर साल हजारों महिलाएँ दहेज उत्पीड़न और हत्या की शिकार होती हैं। अगर ऐसे अपराधियों को कड़ी और त्वरित सजा मिले तो शायद भविष्य में कोई भी लड़की इस क्रूरता का शिकार न बने।
फास्ट ट्रैक कोर्ट की व्यवस्था ऐसे मामलों में बेहद ज़रूरी है। यदि आरोपी को सालों तक कोर्ट में तारीख पर तारीख मिलती रही तो पीड़िता को न्याय मिलना मुश्किल हो जाएगा। समाज की सुरक्षा और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए ऐसे अपराधों पर तुरंत और कड़ा एक्शन लिया जाना चाहिए।
समाज की ज़िम्मेदारी भी उतनी ही अहम
कानून अपना काम करता है, लेकिन समाज की भी ज़िम्मेदारी बनती है।
- पहला, दहेज जैसी कुप्रथा को बढ़ावा देने वाली मानसिकता को जड़ से खत्म करना होगा।
- दूसरा, शादी में दिखावे और दहेज की होड़ को रोकना होगा।
- तीसरा, हर परिवार को यह संकल्प लेना चाहिए कि वे बेटी को बोझ नहीं बल्कि सम्मान समझेंगे।
आज ज़रूरत इस बात की है कि हम केवल कानून पर निर्भर न रहें बल्कि अपने समाज में जागरूकता फैलाएँ। हर माँ-बाप को अपनी बेटी की शादी में दहेज देने के बजाय उसकी शिक्षा और आत्मनिर्भरता पर ज़ोर देना चाहिए।
निक्की जैसी बेटियों को न्याय मिलना ही चाहिए
निक्की की दर्दनाक मौत ने एक बार फिर साबित किया कि हमारी व्यवस्था और समाज दोनों को जागना होगा। यह सिर्फ एक परिवार की नहीं, बल्कि हर उस बेटी की कहानी है जो दहेज की बलि चढ़ाई जा रही है।
ऐसे मामलों में अगर फास्ट ट्रैक कोर्ट से त्वरित सजा मिलेगी, तो ही यह संदेश जाएगा कि महिला को प्रताड़ित करना या दहेज के लिए उसकी जान लेना किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
निष्कर्ष
निक्की की हत्या जैसे मामले समाज के लिए चेतावनी हैं। दहेज प्रथा केवल एक सामाजिक बुराई नहीं, बल्कि यह हत्यारा रिवाज़ है जिसने हजारों परिवारों को तोड़ दिया है। अब वक्त आ गया है कि हम सब मिलकर आवाज़ उठाएँ और मांग करें कि ऐसे अपराधियों को जल्द से जल्द कड़ी सजा मिले।
समाज तभी सुरक्षित होगा जब बेटियाँ सुरक्षित होंगी। दहेज जैसी कुप्रथा को जड़ से उखाड़ना हम सबकी जिम्मेदारी है। निक्की को न्याय दिलाना केवल उसके परिवार का नहीं बल्कि पूरे समाज का कर्तव्य है।
👉 अगर आप भी मानते हैं कि दहेज हत्या जैसे मामलों में फास्ट ट्रैक कोर्ट से तुरंत सजा मिलनी चाहिए, तो इस संदेश को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँचाएँ।
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