अमर वीरांगना कमलेश कुमारी: संसद हमले की शहीद बेटी, जिस पर भारत हमेशा गर्व करेगा
भारत की धरती पर समय-समय पर ऐसी बेटियाँ जन्म लेती हैं, जो अपने साहस, बलिदान और राष्ट्रभक्ति से पूरे देश को गौरवान्वित करती हैं। इन्हीं में से एक नाम है सीआरपीएफ की आरक्षक (Constable) कमलेश कुमारी। उनकी बहादुरी ने न सिर्फ संसद भवन की रक्षा की, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी यह सिखाया कि असली देशभक्ति शब्दों में नहीं, बल्कि कर्म और बलिदान में होती है।
📌 संसद पर हमला: 13 दिसंबर 2001 की भयावह सुबह
13 दिसंबर 2001 का दिन भारतीय इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा। उस दिन जब संसद का शीतकालीन सत्र चल रहा था, तभी आतंकियों ने देश की लोकतांत्रिक धड़कन यानी संसद भवन को निशाना बनाया।
पाँच भारी हथियारों से लैस आतंकवादी संसद परिसर में घुस आए। उनका मकसद था भारतीय लोकतंत्र को जड़ से हिलाना और देश के नेताओं को नुकसान पहुँचाना।
उस दिन देश की सुरक्षा बलों ने अपनी जान पर खेलकर संसद को सुरक्षित रखा। और इस बलिदान की गवाही देने वालों में सबसे आगे थीं कमलेश कुमारी।
📌 ड्यूटी पर डटी वीरांगना
कमलेश कुमारी उस समय संसद भवन के गेट नंबर 11 पर ड्यूटी कर रही थीं। जब आतंकियों ने गोलियों की बौछार करते हुए प्रवेश करने की कोशिश की, तो उन्होंने निडर होकर उनका सामना किया।
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गोलियों की तड़तड़ाहट में भी उन्होंने अपने कदम पीछे नहीं खींचे।
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उन्होंने तुरंत वायरलेस सेट से अपने साथियों को आतंकियों की स्थिति की जानकारी दी।
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यह सूचना समय पर पहुँचने के कारण संसद भवन का मुख्य द्वार सुरक्षित किया जा सका और सांसदों की जान बचाई गई।
लेकिन इस बहादुरी की कीमत उन्हें अपनी जान देकर चुकानी पड़ी। आतंकियों की 11 गोलियाँ खाने के बाद भी वे अंतिम साँस तक अपनी जिम्मेदारी निभाती रहीं।
📌 बलिदान जिसने बदल दिया हालात
अगर उस वक्त कमलेश कुमारी ने सूचना न दी होती, तो आतंकवादी सीधे संसद भवन के अंदर घुस सकते थे और देश को अपार क्षति पहुँच सकती थी।
उनकी सूझबूझ और साहस के कारण सुरक्षा बलों ने तुरंत मोर्चा संभाल लिया और आतंकियों को संसद भवन के भीतर घुसने से रोक दिया।
यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत का लोकतंत्र आज जिस रूप में सुरक्षित खड़ा है, उसमें कमलेश कुमारी जैसे शहीदों का खून शामिल है।
📌 अशोक चक्र से सम्मानित
उनकी अदम्य वीरता और बलिदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत देश का सर्वोच्च शौर्य पुरस्कार “अशोक चक्र” प्रदान किया।
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वह भारत की पहली महिला आरक्षक बनीं जिन्हें यह सम्मान मिला।
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यह पुरस्कार सिर्फ एक व्यक्ति के साहस की मान्यता नहीं, बल्कि भारत की बेटियों के उस जज़्बे का सम्मान भी था, जो देश की रक्षा में हमेशा अग्रणी रहती हैं।
📌 परिवार का गर्व और दर्द
कमलेश कुमारी के शहादत के बाद उनके परिवार ने अपार दुख सहा। एक बेटी, पत्नी और माँ के रूप में उनका खोना बहुत बड़ा व्यक्तिगत नुकसान था। लेकिन साथ ही, उनके बलिदान ने पूरे परिवार को गर्व से भर दिया।
उनके परिवार ने कहा था कि “हमें गर्व है कि हमारी बेटी ने अपने देश के लिए प्राणों की आहुति दी। उनका नाम हमेशा इतिहास में अमर रहेगा।”
📌 महिला सशक्तिकरण का प्रतीक
कमलेश कुमारी की कहानी सिर्फ शौर्य गाथा नहीं है, बल्कि यह महिला सशक्तिकरण का भी प्रतीक है।
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उन्होंने साबित किया कि देशभक्ति और बलिदान का रिश्ता सिर्फ पुरुषों से नहीं, बल्कि महिलाओं से भी गहराई से जुड़ा हुआ है।
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उन्होंने आने वाली पीढ़ियों की बेटियों को संदेश दिया कि मातृभूमि की रक्षा के लिए महिलाएँ भी उतनी ही सक्षम और समर्पित हैं जितना कोई पुरुष।
📌 समाज और युवाओं के लिए सीख
आज के समय में जब युवा पीढ़ी आराम और सुख-सुविधाओं में ज्यादा व्यस्त हो रही है, कमलेश कुमारी की शहादत हमें याद दिलाती है कि असली जिम्मेदारी मातृभूमि और समाज के प्रति होती है।
उनसे हमें यह सीख मिलती है:
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कर्तव्य सर्वोपरि है – चाहे स्थिति कितनी भी कठिन क्यों न हो।
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साहस का मतलब डर न होना नहीं, बल्कि डर के बावजूद सही निर्णय लेना है।
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देशभक्ति सिर्फ भाषणों और नारों से नहीं, बल्कि कर्म और बलिदान से साबित होती है।
📌 देश की बेटियों के लिए प्रेरणा
आज जब हम बेटियों की शिक्षा और सुरक्षा की बात करते हैं, तब कमलेश कुमारी जैसी बेटियाँ हमें रास्ता दिखाती हैं।
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उन्होंने दिखाया कि बेटियाँ सिर्फ घर-परिवार की जिम्मेदारी नहीं उठातीं, बल्कि राष्ट्र की रक्षा में भी अपनी जान न्यौछावर कर सकती हैं।
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उनका जीवन हर उस भारतीय महिला के लिए प्रेरणा है जो अपने सपनों और कर्तव्यों के बीच संतुलन बनाना चाहती है।
📌 निष्कर्ष
कमलेश कुमारी सिर्फ एक नाम नहीं हैं, बल्कि एक भावना हैं—देशभक्ति, साहस और बलिदान की भावना।
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उन्होंने अपने जीवन के आखिरी पल तक देश की रक्षा की।
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उन्होंने यह साबित किया कि भारत की बेटियाँ किसी से कम नहीं हैं।
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उनका नाम आज भी हर भारतीय के दिल में अमर है और हमेशा रहेगा।
👉 जब भी हम 13 दिसंबर 2001 की घटना को याद करेंगे, हमें यह भी याद रखना होगा कि संसद भवन आज सुरक्षित है तो उसमें कमलेश कुमारी जैसी वीरांगनाओं का खून शामिल है।
🙏 आइए, हम सब मिलकर इस अमर वीरांगना को नमन करें और उनके बलिदान को याद रखते हुए अपने जीवन में देश के प्रति जिम्मेदारी निभाने का संकल्प लें।
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