मराठा आरक्षण पर नया अध्याय: “जीता वो, जो लड़ता रहा”
प्रस्तावना
मराठा आरक्षण एक ज़ोरदार राजनीतिक और सामाजिक बहस का विषय बना हुआ है। हाल ही में मुंबई के आज़ाद मैदान में मराठा समुदाय ने मनोज जरांगे पाटील के नेतृत्व में आरक्षण की मांग को लेकर भूख हड़ताल शुरू की। इस संघर्ष में आज एक निर्णायक मोड़ आया है—सरकार ने उनके कई प्रमुख मांगों को मान्यता दी, जिससे आंदोलन को एक "शांति पूर्ण विजय" मिली।
आंदोलन का अंत—सरकार ने कबूला जनादेश
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने घोषणा की कि सरकार "हैदराबाद गज़ेटियर" आधारित दस्तावेज़ों पर मराठा समाज के लोगों को कुणबी प्रमाणपत्र जारी करेगी। यह न्यूनतम सतही आरक्षण नहीं, बल्कि व्यक्तिगत पात्रता पर आधारित होगा, यानी blanket आरक्षण नहीं होगा। इस निर्णय से मनोज जरांगे ने अपनी पाँच दिवसीय भूख हड़ताल को खत्म कर दिया और कहा—“हम जीत गए।”
हैदराबाद ग़ज़ेटियर का महत्व
हैदराबाद गज़ेटियर एक ऐतिहासिक दस्तावेज़ है, जिसमें 1918 में निजाम द्वारा मराठवाड़ा क्षेत्र में किए गए जनगणना संबंधी जाति-व्यवस्था के विवरण शामिल हैं। सरकार ने इसे पहचान आधार बनाने का फ़ैसला किया है ताकि मराठा लोग कुणबी जाति का प्रमाणपत्र प्राप्त कर सकें और ओबीसी आरक्षण का लाभ उठा सकें। इसे लागू करने के लिए स्थानीय स्तर पर तीन सदस्यीय सत्यापन समितियाँ बनाई जाएँगी, जो पैन, ग्रामपंचायत और कृषि विभाग के अधिकारी मिलकर तय करेंगे कि कौन पात्र है।
आंदोलन की सफलता—क्या हुआ हासिल?
-
कुल आठ मांगों में से छह मांगें मंजूर की गईं। किसानों, पिछड़े वर्ग एवं लोकतंत्र के समर्थकों ने इसे एक बड़ी सामाजिक जीत माना।
-
मनोज जरांगे ने कहा कि अब मराठा समुदाय को कुणबी प्रमाणपत्र मिलेंगे, और उनका संघर्ष खत्म हुआ।
-
अभिनेत्री प्राजक्ता गायकवाड ने सोशल मीडिया पर लिखा:
"जब-जब मराठा लड़ता है, तब-तब इतिहास बनता है" — यह पंक्ति जनमानस में हर्ष की लहर बिखेर रही है।
OBC समुदाय का विरोध जारी
कुछ OBC संगठन, जैसे नेशनल OBC फेडरेशन, ने इस निर्णय को “बैकडोर एंट्री” करार देते हुए तीखा विरोध किया है। उनका कहना है कि मराठा आरक्षण नए OBC नागरिकों के अधिकारों में सेंध डाल सकता है। OBC नेताओं ने सरकार से स्पष्ट वार्ता और गारंटी की मांग की है।
संवैधानिक सीमाएं और मान्यता
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि SC की 50% आरक्षण सीमा को पार करने के लिए विशेष संविधान संशोधन और कोर्ट की मंजूरी ज़रूरी है। महाराष्ट्र सरकार ने यह निर्णय सैद्धांतिक रूप से वैध तरीके से लिया है, लेकिन इसे लागू करने में अदालतों की संभावित चुनौती बनी रहेगी।
संघर्ष की लंबी पृष्ठभूमि
मराठा आरक्षण की यह लड़ाई कोई नई नहीं है—
-
2016–17 में Maratha Kranti Morcha के नेतृत्व में आंदोलन शुरू हुआ था, जिस पर न्यायिक और राजनीतिक संस्थाओं ने कदम उठाए थे।
-
मार्च 2021 तक SC ने आरक्षण को असंवैधानिक ठहराया था, जिसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने EWS क्वोटा से मराठा समुदाय को कुछ राहत प्रदान की थी।
-
सन् 2023 से “कुणबी दस्तावेज” आधारित प्रक्रिया शुरू की गई, और अब इसका क़ानूनी रूप ले लिया गया है।(Wikipedia)
निष्कर्ष
मराठा आरक्षण आंदोलन ने एक निर्णायक मोड़ ली है—जहाँ आंदोलनकारियों ने शांतिपूर्ण लेकिन दृढ़ तरीके से अपनी मांग को पूरा कराया है। हैदराबाद गज़ेटियर आधारित प्रमाणपत्र प्रणाली से मराठा समुदाय को OBC आरक्षण तक पहुँचना संभव होगा। वहीं दूसरी ओर OBC समुदाय की चिंताएं बनी हुईं है और संघर्ष अब कोर्ट तथा राजनीतिक मंचों पर जारी रहेगा।
यह संघर्ष लोकतंत्र और सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है—लोकतांत्रिक तरीकों से जब समाज संगठित हो और न्याय की मांग करें, तो इतिहास भी रुक कर सुनता है।
टिप्पणियाँ